Wednesday 27 February 2013


रेलमंत्री पवन बंसल आज रेल बजट पेश कर रहे हैं रेल हम सभी के जीवन से जुड़ा बहुत ही जरुरी संसाधन है। यात्रा के दौरान चाय ,काफी .समोसे हो तो मजा ही नहीं आता है। इस रेल बजट 2013-14 पर हमने रेलवे वेंडरों की हाल चाल पड़ताल किया गोमती एक्सप्रेस में चाय बेचने वाले संतोष कुमार ने अपनी कहानी सुनते हुए निराश हो गये उनका कहना था की कई रेल बजट आये और गये लेकिन उनके परिवार की हालत नहीं सुधर सकी सरकार अपने ही घाटे को पूरा करने में लगी रहती है।

कुली,चाय बेचने वाले,ठेला चलाने वाले,के बिना रेलवे अपनी विकासयात्रा पूरी नहीं कर सकता है। रेलवे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा मालभाड़ा,पार्सल से करती है। सवाल ये है कि जिन्दगी भर रेलवे के लिए मजदूरी करने वाला कहाँ है?रेलवे अगर एक बहुत बड़ा परिवार है तो फिर ये लोग हाशिये पर क्यों पड़े है?ये चाय -पानी बेचने वाले अक्सर रेलवे पुलिस के मनमानी के शिकार होते है। मैंने देखा है स्टेशनों पर वेंडर से पुलिस वाले पानी की बोतले,चाय इतयादि लेकर पैसे नही देते है। इतने बड़े सिस्टम में ये हेरा फेरी रोकने की कोशिश क्यों नही हो रही है ?कही इसे पूजा चढ़ावा तो नही माना जा रहा है ?रेलवे महगाई का दुहाई दे कर यात्री किराया बढ़ाता जा रहा है,क्या उसने कभी अपने मजदूरों के नियमतिकरण पर ध्यान देना जरुरी समझा ?

निश्चित रूप से रेलवे देश की अर्थव्यवस्था का जरुरी अंग है लेकिन अच्छा तभी हो सकता है जब इसके अन्दर काम करने वाले लोगो को बेहतर और अच्छी सुविधा मिल सकें। भारतीय रेल में सफ़र करने वाले यात्रियों को अक़सर ट्रेन में दिए जाने वाले भोजन को लेकर शिकायत रहती है. समय-समय पर खाने की गुणवत्ता और साफ़-सफ़ाई के बारे में भी सवाल उठे हैं। कोई ये क्यों नही सोचता है कि इन सफ़ाईकर्मचारियों की क्या क्या समस्या है?इन तमाम सवालों के बीच ये शेर और बात ख़तम कि

''कहाँ तो तय था चिराग हर घर के लिए ,

कहाँ अब चिराग मयस्सर नहीं सारे शहर के लिए ''

 

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