Saturday 9 March 2013

लड़कियाँ उठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जायेगा

इतिहास हमें बताता है कि देवी सीता से लेकर सती सावित्री ,अहिल्या और फिर रानी लक्ष्मी बाई जैसी कई महिलाओ के चरित्र का समाज ने कठिन परीक्षा लिया है।वो पास भी हुई ।  मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि आज का समाज महिलाओं से कितनी? और  कैसी -कैसी परीक्षा ले रहा है?

 पाकिस्तान में छोटी सी  लड़की  मलाला को गोली मारी जाती है ,छत्तीसगढ़ में सोनी सोरी नाम की महिला से हवालात में क्रूर बलात्कार होता है ,मणिपुर में भारतीय सेना के दुराचार से तंग आकर महिलाओ को कपडे उतार कर विरोध करना पड़ता है,सड़क पर सिर झुकाये अकेली जा रही लड़की पर कुछ लड़के अश्लील कमेन्ट करते हैं ,16 दिसम्बर को बसंतकुंज में दुष्कर्म और हत्या का नया इतिहास लिखा जाता है ,इसी 6 मार्च को गाजियाबाद के शिप्रा माल से लौट रही लड़की के साथ  ऑटो ड्राईवर और उसके साथी दुष्कर्म करते हैं ..............................?????ये कुछ शर्मनाक उदाहरण  महिलाओं पर हर रोज होने वाले अत्याचार के कठोर सबूत पेश करते हैं । 

इन घटनाओ को लेकर कुछ लोगो का मानना है कि इसके लिए लड़की खुद  जिम्मेदार है । उनका तर्क है की लड़की देर रात को सड़क पर निकलेगी तो और क्या होगा ?मेरी समझ से इस मानसिकता के पीछे ये है कि लोग लड़की को उसकी देह की भाषा में ही देखते हैं। मैं पूछता  हूँ की क्या लड़की शरीफ, अच्छी ,इन्सान और समाज का एक महत्त्व पूर्ण हिस्सा नहीं है ?यदि है तो फिर उसके जीने अधिकार इतने सीमित कैसे हो सकते है ?

दुष्कर्म के इस हिंसा में महिला की मुस्कान गुम हो रही है । वो सुबह कोचिंग ,आफिस जाये और शाम को तय समय पर घर पहुच जाये यही उसके लिये संघर्ष का सवाल बन गया है । इतने बड़े सामाजिक ,गन्दगी में स्त्री को शिक्षित ,आर्थिक आत्मनिर्भर ,तकनीकी निपुणता ,समाज में सम्मानित स्थान दिला  पाने का लक्ष्य बहुत पीछे छूटता दिख रहा है । सवाल ये भी है कि सोनिया ,शीला दीक्षित ,किरण बेदी ,ममता शर्मा ,मायावती जैसी सशक्त महिलाओ का इस दिशा में इतना तटस्थ प्रयास क्यों है ?

एक महिला अधिकारी (निधि तिवारी)  ने बातचीत में बताया की "महिलाओं पर हो रही सभी हिंसा केवल उनके आर्थिक और शैक्षिक रूप से कमजोर होने के कारण  है "उन्होंने कहा कि ईट और सीमेंट मसाला सिर पर रखा कर बन रही इमारतो में काम  करने वाली महिलाओं की जिन्दगी बहुत  कष्ट कर है । उनके साथ शारीरिक शोषण आम बात है मानो वो तक़दीर में लिखा कर आई हैं । ठेकेदार ,मालिक महिला मजदूर के साथ अशलील हरकत करता है ,लेकिन वो खामोश है -क्योकि उसे अपना बाद में पहले ,अपने बच्चों का पेट भरना है । कई बार थक हार कर वो आत्महत्या भी कर लेती है ,लेकिन समाज वही खुश है और कल दुसरी नौकरानी बुला लेता है । आधुनिकता के नाम पर लोगो ने कपडे ,घर ,और सामाजिक दिखावा तो खूब बड़ा कर लिया है लेकिन वही दूसरी तरफ  उनकी  सोच और गन्दी हो गयी है । 

ये बात स्पष्ट है कि कुछ लोग अपने धन ,प्रभाव आदि का इस्तेमाल इस तरह के शोषण में कर रहे है ,अभी हाल में पंजाब के एक थाने में छेड़छाड़ की शिकायत करने आई महिला और उसके पिता को पुलिस ने पिटाई कर दी । पुलिस अपने हिस्से का काम इस तरह करती है इससे भला किस सामाजिक बदलाव की उम्मीद की जाये ?

हमारे देश में साक्षरता करीब ७ ५ फीसदी है लेकिन अफसोस काश हम एक लड़की को उसकी शरीर के नज़र से  देखने,पह्चानने  के बजाय एक  दोस्त ,बहन,बेटी ,ईमानदार लड़की  समझ पाते । 

अगर दुर्भाग्य से हम ये नहीं समझ पाते तो इन चीजो के लिए कई लोग ज़िम्मेदार हैं । समाज अगर इस स्वार्थी ढ़ंग से बदल रहा है जहाँ ज़मीर मर सा गया है ऐसे में हर व्यक्ति कि ईमानदारी और कीमती हो गयी है चाहे वह  टैक्सी बस ड्राइवर कोई ही  क्यों न हो ।